माटी के गनेस बइठारव-पर्यावरण के मान बढ़ावव

माटी के मुरति सबले सुग्घर, चिक्कन-चाँदन अउ श्रेष्‍ठ माने गए हावय। माटी के मुरति हा जिनगी के सुग्घर अउ सिरतोन संदेश ला बगराथे के जौन जिहाँ ले आये हे उँहें एक दिन खच्चित लहुठ जाथे। नदिया के चिक्कन माटी ले बने देबी-देवता मन के मुरति हा उही पानी मा जा समाथे। सार गोठ हे के जइसे जनम होथे जग मा वइसने मृत्‍यु होथे जम्मो परानी के। ए गोठ हा अटल अउ असल गोठ हरय। माटी के मुरति हा हमर जिनगी के अधार पर्यावरण बर घलाव बड़ सुग्घर सहायक अउ हितवा होथे। हमर जिनगी मा पर्यावरण अउ प्रकृति के घातेच महत्तम हावय। पर्यावरण बिन जिनगी अधमरा हे, अबिरथा हे। पर्यावरण हे ता हमर मन के ए जिनगी हे अउ ए जिनगी हे ता पर्यावरण हे। पर्यावरण हा अब्बड़ अकन घटक मन ले मिल के बने हावय। एमा मनखे घलाव हा पर्यावरण मा एक दुसर के पूरक हावय। प्रकृतिच हा एक नियम नीति के हिसाब मा पर्यावरण हरय। पर्यावरण के बिन मनखे के कोनो अस्तित्व नइ हे। मनखे हा जिनगी देवइया पर्यावरण के सबले बड़का उपभोक्ता घलाव हरय। मनखे अपन जिनगी मा नइतिक, आरथिक अउ समाजिक बिकास के अपन सबले ऊँच श्रेष्‍ठ मकाम ला अपन सुग्घर समझदारी, अक्कल ले पर्यावरण के उपयोग कर के पा सकथे। बिन सोचे समझे हर्रस-भर्रस प्रकृति के दोहन ले एक दिन मुड़ धर के रोय ला परही। मनखे के उत्ता-धुर्रा बिकास के बइसुरहा धुन मा आज सबले जादा संकट धरती मा रहइया जम्मो जीव उपर छाये हावय। प्रकृति के जम्मो कारज हा व्‍यवस्थित अउ अपनेच अपन अचरज भरे चलइया हरय जेमा कोनो परकार के कोनो दोस नइ हे। जम्मो जीव जगत के सरीर के विशेषता अउ बनावट के हिसाब ले पर्यावरण के व्‍यवस्‍था अउ संचालन अतका सुग्घर सटिक हे के एमा कोनो हा एकोठन दोख अउ कमी कभुच नइ निकाल सकय। मनखे हा प्रकृति के उपकार ला भुलाके ओखर मालिक अउ सिरजन बने के गलती करत जावत हे। मनखे के बाढ़त अबादी, भोगवाद संस्‍कृति, युद्ध, परमानु परीक्षण अउ औद्दोगिक बिकास के कारन प्रकृति ला भारी नसकान होवत हे। एखर कारन ले रंग-रंग के आनी-बानी के रोग-राई हा सरी संसार मा संचरत हे, अमावत हावय। मनखे के गलती ले प्रदूषण राक्षस हा जनम ले हावय जउन हा हमर पिरिथिवी बर बड़ खतरा बनत जावत हे।




मनखे के पइदा करे प्रदूषण राक्षस ले सबले जादा भुँइयाँ, हवा अउ पानी हा प्रभावित होवत हावय। ए तीनों जिनगी देवइया जीनिस के परदुसित होय ले ए धरती मा रहइया जम्मो जीव ला जादा नसकान उठाय ला परत हावय। ए हा धरती ला संकट मा डारत हावय। ए संकट हा दिनोंदिन बाढ़हत जावत हे। मनखे के पइदा करे प्रदूषण हा आज मनखे बर सबले जादा जीवलेवा बनत जावत हे। प्रदूषण ले निपटे बर जबर-जबर कानून घलो बनाय गे हे। सरकार हा ए कानून मन के पालन करे मा कोनो कोताही घलो नइ बरतत हे। कानून के पालन ले, सजा दे ले ए प्रदूषण हा कम नइ होवत हावय अउ दिन-रात बाढ़तेच जावत हे। कानून के लौड़ी ले मनखे के ए गलती ला सुधारना अड़बड़ मुसकुल हावय। सुग्घर अचार, बिचार अउ बेवहार ले हमन घातेच अकन प्रदूषण ला रोक सकथन, दुरिहा कर सकथन। इही बेवहार मा हमन हा माटी के मुरति ला बनाके, बइठा के अउ ओखर पूजा-पाठ करके अपन जिनगी देवइया तरिया-नदिया के पानी ला परदुसित होय ले बचा सकथन। नदिया के चिक्कन माटी ले मुरति बना के फेर नदिया के पानी मा बिसरजन करे ले नदिया के पानी अउ वोमा रहइया जम्मो जीव ला कोनो परकार के कोनो नसकान नइ होवय माटी हा पानी मा चोबीस घंटा मा घुर जाथे। माटी ले नदिया ला कोनो गलत परभाव घलो नइच परय। माटी ले बने गनेस अउ प्रकृतिक रंग ले रंगे मुरति के नदिया मा बिसरजन ले कोनो जीव ला कोनो परकार के कोनो प्रदूषण के काँहीं डर नइ रहय।




आजकाल माटी के जगा मा पलास्टर आफ पेरिस ले बने गनेस अउ दुरगा मन के मुरति के चलन हा बाढ़हत जावत हे। पलास्टर आफ पेरिस ले बने मुरति मा जतका सुघराई हे ओखर ले जादा दुखदाई घलाव हावय। ए हा पानी मा घुरे बर अब्बड़ मुसकुल होथे। एखर संग संग एमा जीवलेवा रसायनिक रंग के भक्कम परयोग होथे जौन हा पानी अउ पानी मा रहइया जीव-जन्तु मन बर घातेच हानिकारक होथे। ए हा पानी मा घुरइया जीनिस नो हे। ए हा हमर आस्था अउ बिसवास के हिसाब ले घलाव बने बात नो हे। पलास्टर आफ पेरिस ले बने मुरति मन हा सास्त्र सम्मत नइ माने जावय। एहा मनखे मन के आस्था अउ बिसवास के संग सिरिफ छलावा भर हरय। हमर वेद-पुरान अउ सास्त्र मन मा माटीअउ गोबर के बड़ महत्तम बताय गे हावय। माटी ले बने मुरति मा कोनो परकार के कोनो मिलवट नइ रहय एखर सेती माटी ला सबले शुभ अउ श्रेष्‍ठ माने जाथे। जम्मो जीव जगत बर माटी के एकेच ठन सार अउ सिरतोन संदेश हे- एकदिन सबला इही माटी मा मिल जाना हे, समा जाना हे। जइसे आये हन तइसे एकदिन उँहे चले जाना हे। जिनगी देवइया नदिया मा, ओखर पानी मा भक्ति, पूजा-पाठ, आस्था, सरद्धा अउ जप-तप रचे के पाछू जहर घोरे के उदिम करइ हा सभ्य समाज ला शोभा नइ दय। माटी के मुरति ला छोड़ के अउ आने-ताने जीनिस ले बने मुरति मन के बिसरजन ले जल मा जहर फइलथे। ए हमर बगराय जहर जल अउ जल मा रहइया जम्मो जीव बर जीवलेवा होथे। ए अधरम ले बाँचे के एकेठन उपाय हे- माटी के मुरति के पूजा अरचना करिन अउ नदिया मा बिसरजन करिन।



नदिया के माटी ले गनेस अउ दुरगा मन के मुरति गढ़हे जाथे। ए मुरति मन सबले सुरक्छित अउ सही माने जाथे। नदिया के माटी ले बने सिरी गनेस के मुरति धरम सास्त्र के हिसाब ले घलाव शुभ अउ श्रेष्‍ठ माने गे हे। ए बात के रहस्य गनेस जी के जनमकथा मा घलो समाय हे। हिन्दू ग्रंथ मन के हिसाब ले माता पारवती हा माटी के बालक गढ़ीन। कइ ठन ग्रंथ मा ए बालक के रचना माता पारबती हा अपन सरीर के उबटन (मइल) ले करे रहीन अइसन बताथे। इही माटी/मइल ले गढ़े मुरति मा माता हा जीव पार के असनांदे ला चल दीन। इही माटी ले बने लइका गनेस हा अपन महतारी पारबती के आज्ञा ले दुवारी मा रखवारी करे ला बइठ गे। शिवशंकर जी हा जब घर आइन ता इही माटी के गनेस हा घर भीतरी मा जाये ले छेंक दीस, बरज दीस। गुस्सा मा शंकर जी हा गनेस के घेंच ला काट दीन। दाई पारबती के गुस्सा अउ जिद्धी के कारन शंकर जी हा लइका गनेस के देह मा हाथी के लइका मुड़ी ला खाप दीन। माटी के लइका गनेस के कटे मुड़ी के जगा मा हाथी के लइका के मुड़ी ला जोर दीन। एक बेर फेर महतारी के ममता मा माटी ले बने गनेस बड़ बल, बुद्धी अउ अलग रंग-रुप मा सबके आगू मा अवतरिन। ए कथा ले गनेस जी के पार्थिव जीनिस माटी के महत्तम ला बताये गे हे। प्रकृति के मान गउन प्रकृतिक जीनिस ले जादा ले जादा उपयोग मा हावय। प्रकृति अउ पर्यावरण हमला हर हाल मा सुख अउ सुरक्षा देथे ता हमू मन हा ए प्रकृति के रक्षा ला अपन धरम-करम मान के करीन तभे हमर भलई हावय। पर्यावरण के रक्षा करना हा हमर सबले बड़े भक्ति हरय।

कन्हैया साहू “अमित”
भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055
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